टोंक
दरअसल में बीसलपुर व अन्य नहरों से सिंचार्ई के पानी की उपलब्धता के चलते किसान कीटनाशक व उवर्रक का अधिकाधिक प्रयोग करने लगे हैं। इससे लोगों की सेहत के साथ खिलवाड़ हो रहा है। विभागीय अधिकारी भी स्वीकार रहे हैं कि अधिक उत्पादन के चक्कर में रासायनिक उर्वरकों का उपयोग बढ़ा है।
इसके साथ ही विभिन्न फसलों में होने वाली व्याधि व कीटों से बचाव के लिए कीटनाशक का प्रचलन भी समय के साथ बढ़ा है। चिकित्सकों का कहना है कि फसलों पर किए जाने वाले कीटनाशक का शरीर पर इतना प्रभाव नहीं पड़ता।
इसके विपरीत सब्जियों में उपयोग में लिए जाने वाले कीटनाशक व रासायनिक खाद का सर्वाधिक असर पाचन क्रिया पर पड़ता है। क्यों कि कीटनाशक के उपयोग के कुछ घंटों बाद ही सब्जियां लोगों की रसोई तक पहुंच रही है। जबकि फसलों में कीटनाशक का दुष्प्रभाव निश्चित अवधि के बीच ही रहता है। बुवाई, कटाई व लोगों के घरों तक पहुंचने में काफी समय बीत चुका होता है। इससे ये इतना प्रभावी नहीं होता।
4 से 5 करोड़ खर्च
कृषि विभाग के मुताबिक किसानों में ‘कीटनाशक खरपतवार की अधिक मांग बढ़ी है। तीन साल पहले तक जिले में मुश्किल से 20 लाख रुपए साल के कीटनाशक खरपतवार की बिक्री हुआ करती थी। इसका आंकड़ा बढ़कर अब चार से पांच करोड़ तक हो चुका है। इसका कारण यह कि पहले किसान फसलों के साथ होने वाले खरपतवार को हटवाने के लिए निराई-गुडाई कराता था। इस पर खर्च अधिक आता था। अब खरपतवार कीटनाशक का छिड़काव कर देने से फसल के आसपास पनपने वाले खरपतवार नष्ट हो जाते हैं। इससे फसल तेजी से बढ़ती है। इसके उपयोग के बाद निराई-गुडाई की आवश्यकता महसूस नहीं होती।
भूमि पर भी पड़ रहा असर
जिले के कई किसान अधिक उत्पादन के लालच में बेहिसाब फास्फोरस खाद का उपयोग कर रहे हैं, लेकिन वे इस तथ्य से अनजान हैं कि ऐसा करने से वो दिन दूर नहीं जब उनकी भूमि बंजर हो जाएगी। जानकारी के मुताबिक रबी की फसल के लिए जिले में 40 हजार मीट्रिक टन खाद की जरूरत के मुकाबले किसान 50 हजार मीट्रिक टन खाद खेतों में डालते हैं। इसके अलावा बाजार तथा अन्य जिलों से खरीदकर लाई गई खाद अलग है।
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