जयपुर।
अगर आप किसी भी काम को बेहतर तरीके से करना चाहते हैं तो एक समय में अपना ध्यान कई जगह से लगाने से बचें। नए शोध से पता चला है कि एक बार में कई काम करने से सीखने की प्रक्रिया धीमी पड़ती है। 4 लाख सेंसर हमारे दिमाग में हर मिनट कौंधते हैं, जो सूचनाएं फिल्टर करते हैं।
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तंत्रिका कोशिकाओं पर किए गए प्रयोगों से पता चला है कि एक बार में एक काम करने से और धीमे-धीमे आगे बढऩे से याददाश्त अच्छी होती है। लेकिन अगर इसी वक्त किसी दूसरे विषय को लेकर दिलचस्पी जगती है या ध्यान भटक जाता है तो यह संभव है कि वह काम जो उस वक्त आप कर रहे हैं वह आपकी लॉन्ग टर्म मेमोरी का हिस्सा न बने। दूसरा काम करने से होता यह है कि आपने पहले जो सीखा था वह भी भूल जाते हैं और दूसरा वाला काम ज्यादा ढंग से याद रह जाता है।
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अगर आप किसी भी काम को बेहतर तरीके से करना चाहते हैं तो एक समय में अपना ध्यान कई जगह से लगाने से बचें। नए शोध से पता चला है कि एक बार में कई काम करने से सीखने की प्रक्रिया धीमी पड़ती है। उदाहरण के तौर पर कभी-कभी हमें किसी का नाम याद ही नहीं आता या फिर कहीं जाने का होश नहीं रहता। करीब-करीब हर आदमी अपनी जिंदगी में इस तरह की घटनाओं से दो-चार होता है और ऐसा होने पर वह खुद को कोसता है, लेकिन क्या आपको पता है कि दिमाग के लिए ऐसा करना बेहद जरूरी है। इसकी वजह यह है कि हमारे दिमाग में हर मिनट लगभग चार लाख सेंसर कौंधते हैं, जो सूचनाएं फिल्टर करते हैं। दिमाग को जानकारी याद रखने के लिए अलग अलग इलाकों की जरूरत पड़ती है। कहीं शॉर्ट टर्म मेमोरी होती है तो कहीं लॉन्ग टर्म। जर्मनी की ब्राउनश्वाइग टेक्निकल यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक दिमाग की कोशिकाओं से याददाश्त और सीखने की प्रक्रिया समझने का दावा कर रहे हैं।
करत करत अभ्यास के…
जानकारियां जब एक ही साइनैप्स पर पहुंचकर आपस में एक दूसरे को मजबूत बनाती हैं, तभी वे लॉन्ग टर्म मेमोरी का हिस्सा बन सकती हैं। जबकि एक साथ कई चीजें करने से कई साइनैप्स सक्रिय हो जाते हैं।
क्या है साइनैप्स
अलग-अलग साइनैप्स अलग-अलग केमिकल से बने होते हैं। यह एक तरह के न्यूरोट्रांसमीटर हैं। 40 तरह के केमिकल वाले साइनैप्स खोजे गए हैं, जो शारीरिक गतिविधियों के लिए जिम्मेदार हैं। 10,000 तक होती है तंत्रिका कोशिकाओं के जोड़ों की संख्या। इन जोड़ों को ही साइनैप्स कहते हैं।
कहां है दिक्कत
वैज्ञानिक चूहे के दिमाग के हिप्पोकैम्पस इलाके पर शोध कर रहे है। याद रखने में यही हिस्सा अहम भूमिका निभाता है। मस्तिष्क विज्ञानी प्रोफेसर मार्टिन कोर्टे के अनुसार, दिमाग की तंत्रिका कोशिकाएं प्रोटीन मॉलिक्यूल्स को पाने की होड़ में रहती हैं। लंबे समय तक कुछ याद रखने का राज इन्हीं प्रोटीन मॉलिक्यूल्स में छुपा है। वह मॉलिक्यूल संबंधी रुकावटें ही हैं, जो शॉर्ट टर्म मेमोरी को लॉन्ग टर्म मेमोरी बनने में रुकावट पैदा करती हैं। दिमाग की हर तंत्रिका कोशिका दूसरी तंत्रिका कोशिकाओं से जुड़ी है। ये जोड़ 10 हजार तक हो सकते हैं. तंत्रिका कोशिकाओं के बीच इस जोड़ को साइनैप्स कहा जाता है। इन्हीं जोड़ों में सीखने का काम होता है और साइनैप्स मजबूती तब बढ़ती है, जब आगे और पीछे वाली कोशिकाएं एक साथ सक्रिय होती हैं।
साइनैप्स में बार-बार हरकत जरूरी
साइनैप्स के हरकत में आते ही अगली और पिछली कोशिका में सोडियम और कैल्शियम का बहाव होता है। कैल्शियम की मदद से साइनैप्स में नया प्रोटीन मालिक्यूल बनता है। पर यह याददाश्त तभी बनी रहती है, जब इसी साइनैप्स में एक ही तरह की हरकत बार-बार हो। फिर साइनैप्स की यह हरकत लंबे वक्त यानी लॉन्ग टर्म मेमोरी बन जाती है। चूहे के दिमाग की मदद से वैज्ञानिकों ने यही कर दिखाया है। इलेक्ट्रिक शॉक देकर कोशिकाओं को उत्तेजित किया जाता है। एक ही साइनैप्स को बार-बार उत्तेजित करने से याददाश्त बेहतर होने लगती है। लेकिन अगर एक ही कोशिका के अलग-अलग साइनैप्स को उत्तेजित किया जाए तो एक घटना से संबंधित यादें मिट भी सकती हैं। प्रोफेसर के मुताबिक, हम यहां एक खास साइनैप्स देख रहे हैं, जो ललक की वजह से सक्रिय हुआ है और इस इम्पल्स की वजह से नए प्रोटीन मॉलिक्यूल्स बन रहे हैं, लेकिन अगर इसी वक्त किसी दूसरे विषय को लेकर दिलचस्पी जगती है या ध्यान भटक जाता है तो हो सकता है कि प्रोटीन मॉलिक्यूल इस साइनैप्स में न रहें और कहीं और चले जाएं।
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