मुंबई: मसालेदार भारतीय भोजन, निजी स्वच्छता, खतना, तंबाकू के इस्तेमाल पर प्रतिबंध कुछ ऐसी चीजें हैं, जो कैंसर से खुद को बचाने में मददगार साबित हो सकती हैं। यह जानकारी एक जाने-माने कैंसर विशेषज्ञ ने दी है। टाटा मेमोरियल सेंटर के निदेशक राजेंद्र ए बाडवे ने कहा कि कैंसर शब्द का इस्तेमाल ही अकसर इंसान में कंपकपी पैदा कर देता है लेकिन यदि इसकी पहचान जल्दी हो जाए तो इसका उपचार संभव है। उन्होंने एक साक्षात्कार में कैंसर से जुड़े कई मुद्दों और इससे निपटने के तरीकों पर बात की।
इस साक्षात्कार के कुछ अंश इस प्रकार हैं-
प्र- कैंसर के प्रकोप से निपटने के लिए भारत किस प्रकार काम कर रहा है?
उ- जहां तक ‘प्रति लाख कैंसर के मामलों की संख्या’ की बात है तो भारत में पिछले 20 साल से अधिक समय से कैंसर लगभग स्थिर बना हुआ है। अन्य ब्रिक देशों- ब्राजील, रूस और चीन में कैंसर के मामलों की यह संख्या बढ़ रही है लेकिन भारत में यह संख्या स्थिर है। हालांकि इसमें कुछ भौगोलिक विविधताएं हैं। यदि आप शहरी भारत में आंकड़ों पर नजर डालें तो यह संख्या वार्षिक तौर पर प्रति एक लाख 90 से 100 है। उपशहरी क्षेत्र में यह संख्या प्रतिवर्ष 60-70 प्रति लाख है। ग्रामीण भारत में यह 40-50 प्रति लाख है।
प्र- क्या आपको लगता है कि कैंसर शहरों से फैल रहा है?
उ- शहरीकरण से कैंसर हो रहा है। कुछ कैंसर बढ़ रहे हैं और कुछ में कमी आ रही है। महिलाओं में स्तन और गर्भाशय के कैंसर बढ़ रहे हैं। शहरों में ये 15 प्रति लाख से बढ़कर लगभग 30-35 प्रति लाख हो गए हैं। इसके विपरीत मुंबई में यूटेरिन सरवाइकल कैंसर के मामले 13 से घटकर 8.5 हो गए हैं, जो एक अहम गिरावट है। महाराष्ट्र के शोलापुर जिले के ग्रामीण बारशी में सरवाइकल कैंसर के मामले 32 प्रति लाख हैं जबकि 50 किमी दूर शहरी बारशी में यह 15 प्रति लाख है। यहां निजी स्वच्छता अहम हो जाती है। बहता पानी, स्वच्छता और निजी साफ-सफाई, आधारभूत सुविधाओं से लैस स्नानघर होने पर सरवाइकल कैंसर में कमी आती है।
आप बारशी ग्रामीण, शहरी और मुंबई तीनों में मुस्लिम आबादी को देखें। बारशी ग्रामीण, शहरी और मुंबई में सरवाइकल कैंसर के मामलों की संख्या पांच प्रति लाख है। यह सिर्फ इसलिए है क्योंकि खतना के कारण पुरूषों में निजी स्वच्छता का काम प्राकृतिक तरीके से हो जाता है। वहीं, ग्रामीण इलाकों में पुरूष साझा तालाबों आदि में नहाते हैं। यहां स्वच्छता कहां है? ऐसे में संक्रमण की आशंका बेहद ज्यादा हो जाती है।
तब हम पूछते हैं कि पूरे पश्चिम एशिया में सरवाइकल कैंसर मौजूद नहीं है। यह 4-5 मामले प्रति लाख है। हम एक विकल्प क्यों नहीं दे सकते? हम खतना कर सकते हैं- ह्यूमन पैपिलोमा वायरस (एचपीवी) और एचआईवी के संचरण की संभावना कम हो जाती है। दूसरे, हम सरवाइकल कैंसर की जांच के लिए कार्यक्रम चला सकते हैं- हमारे अपने अध्ययन दिखाते हैं कि 30 प्रतिशत तक की कमी संभव है। तीसरा, हम टीकाकरण कर सकते हैं।
प्र- क्या आप हिंदुओं को खतना करवाने का सुझाव दे रहे हैं?
उ- उन्हें विकल्प दिया जाना चाहिए। मैं किसी पर दबाव नहीं बना रहा लेकिन हमें विकल्प तो देना ही चाहिए। जननेंद्रिय स्वच्छता बेहद अहम है। जननेंद्रिय स्वच्छता, खतना, जांच इन सबका विकल्प लोगों के सामने रख दीजिए और उन्हें फैसला करने दीजिए।
शहरी भारत में जो तीसरा सबसे घातक कैंसर कम हो रहा है, वह पेट का कैंसर है। जिन्हें पेट का कैंसर हो जाता है, उनमें से महज 5% ही पांच साल जी पाते हैं। 95% लोग शुरुआती पांच साल में ही मर जाते हैं। भोजन के उचित परिरक्षण के कारण शहरों में कैंसर तेजी से कम हो रहा है। ग्रामीण भारत में भोजन को रातभर फ्रिज और परिरक्षण के बिना रखा जाता है और इसके कारण फंगस पैदा हो सकता है, जिससे पेट का कैंसर हो सकता है। शहरों में इसके मामलों की संख्या छह प्रति लाख से कम हो गई है। पहले यह 20 प्रति लाख थी। इसलिए स्वच्छ भारत एक अच्छा कदम है।
दूसरी अहम चीज यह है कि कुछ कैंसर बढ़ रहे हैं। ये कैंसर हैं- स्तन कैंसर, गर्भाशय कैंसर, खाद्य नली के निचले हिस्से का कैंसर। आंतों और गुर्दे के कैंसर के अलावा ये सभी कैंसर मोटापे से हो जाते हैं और पूरे शहरी भारत में यही स्थिति है। ग्रामीण भारत में मोटापा नहीं होता- लोग मेहनत करते हैं। मोटापे से छह अलग-अलग प्रकार के कैंसर हो जाते हैं और इन सभी से बचा जा सकता है। स्तन कैंसर के आधे से ज्यादा मामले मोटापे के कारण हैं। दैनिक अभ्यास और कम भोजन के जरिए इससे बचा जा सकता है।
मुझे नहीं लगता कि शहरी भारत में अब भूख नाम की कोई चीज रह गई है। आसपास में इतना भोजन है फिर भी हर मां को लगता है कि उनका बच्चा खाता ही नहीं है। अगर ऐसा है तो फिर बच्चे मोटे कैसे हो जाते हैं? वे कसरत न करने के कारण मोटे हो जाते हैं। भारत में कैंसर के मामले अमेरिका का तीसरा या छठा हिस्सा हैं। अमेरिका में कैंसर के मामलों की संख्या 300 प्रति लाख है। ‘बिल ऐंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन’ ने बारशी में यह समझने के लिए 10 लाख डॉलर से अधिक लगा दिए कि पिछले 30 साल में वहां स्तन कैंसर के मामलों की संख्या आठ प्रति लाख ही क्यों है। अमेरिका में यह 120 प्रति लाख है। बड़ी आंत के कैंसर के मामले अमेरिका में 60-70 प्रति लाख हैं और भारत में यह चार प्रति लाख है। हमारा आहार अच्छा है, मसाले अच्छे हैं। इन्हें जारी रखा जाना चाहिए।
तंबाकू के सेवन से बचा जाना चाहिए। यह भारत में 40 प्रतिशत कैंसरों की वजह है। यह एकमात्र ऐसा उत्पाद है, जिसे कीटनाशियों की जरूरत नहीं पड़ती। कीड़े भी जानते हैं कि यह खराब है। तंबाकू उद्योग किसान को तीन साल पहले ही भुगतान कर देता है। हमें कुछ करना होगा ताकि वर्ष 2025 तक तंबाकू का उत्पादन बंद हो जाए। किसानों को सब्सिडी दो, वैकल्पिक फसलें दो। कोशिश करिए कि तंबाकू उत्पादन रोकने से जुड़ा कोई प्रलोभन दिया जाए।
प्र- आपको क्या लगता है, लोगों को तंबाकू के इस्तेमाल की लत लगी हुई है या फिर सरकार को कर संग्रहण के जरिए तंबाकू की लत लगी हुई है।
उ- लोगों को लत लगी हुई है। इस बारे में कोई सवाल ही नहीं उठता। सरकार को थोड़ा सा साहसपूर्ण रवैया अपनाना चाहिए और भारी कर लगाना चाहिए ताकि इससे मिलने वाला राजस्व दोगुना हो जाए। आप कर तिगुना कर दें, राजस्व दोगुना हो जाएगा और इस्तेमाल आधा हो जाएगा। इसे करना जारी रखिए और जब आप यह कर रहे हों, किसान को कोई वैकल्पिक फसल दीजिए ताकि उसकी आजीविका प्रभावित न हो।
प्र- क्या आपको लगता है कि सरकार को लत लग गई है?
उ- नहीं, मैं ऐसा नहीं कहूंगा। वे इसके बारे में कुछ कर रहे हैं। भारत में यह समझना बहुत अहम है कि वहां घरों में उद्योग चल रहे हैं। बीड़ी बनाने वाले छोटे उद्योग हैं, इनसे भारी धन आता है। चबाए जाने वाले तंबाकू को हम पहले ही प्रतिबंधित कर चुके हैं। गुटखा पर प्रतिबंध प्रभावी है। पिछले साल से मुंबई में मुंह के कैंसर के मामलों में कमी आनी शुरू हुई है। तंबाकू के सेवन को कम करने से जुड़ा एक विधेयक है। हमें उस कानून को लागू करने की जरूरत है। हमें तंबाकू की बिक्री नहीं करवा सकते।
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